Wednesday, September 30, 2020

दलितों की बेटियाँ

चलो जाती की बात नहीं करते, समानता ही यथार्थ है ये मान लेते हैं. 
ख़ुद ही पहुंच जाती हैं ये दलितों की लड़कियां, निर्ममता के हवाले हो जाती हैं. 
ये मरने के लिए भी आरक्षण चाहती हैं. 
और ऐसा करने में अव्वल आती हैं ये
दलितों की बेटियाँ. 
~~महिमा~~

अपनी बारी

चलो डूब मरते हैं, 
कमज़कम इतना तो
कर ही सकते हैं हम।
बोल नहीं सकते,
लड़ नहीं सकते सच के लिए।
देख नहीं सकते
जलती न्याय की चिता को।
ख़ाक़ तो हो ही सकते हैं न?
नहीं?
तो फिर इंतज़ार करते हैं
अपनी बारी का।
#HathrasHorrorShocksIndia
#Hathras #CrimesAgainstWomen

Tuesday, September 29, 2020

निर्भया कहीं की

तू मर क्यों नहीं जाती, एक ही बार में सदा के लिए. 
तू क्यों मरती है बार बार, और अमर हो जाती है?
आंख नोच ली, जीभ काट दी, आँत खींच ली
योनि तक ध्वस्त कर दी, 
फिर क्यों आती है बार बार, जन्म देने अपने ही अपराधी को?
तू डरती क्यों नहीं? 
निर्भया कहीं की!
~~महिमा~~

Friday, June 26, 2020

प्रलय हो

सोते हैं हम,कि अब प्रलय हो।
जागेंगे हम, कि जब प्रलय हो।।
माता का शव पड़ा है, प्रलय हो।
उसपे शिशु खेलता है, प्रलय हो।।
श्रमिक को शरण नहीं, प्रलय हो।
न जीवन, मरण नहीं, प्रलय हो।।
सड़क है पग जला रही, प्रलय हो।
तृष्णा है अब सुला रही, प्रलय हो।
कोई घर में क़ैदी हो गया, प्रलय हो।
कोई मीलों चला सो गया, प्रलय हो।।
वो विवश हैं, लाचार हैं, प्रलय हो।
ये खींचते दीवार हैं, प्रलय हो।।
वो रो रहे मन खो रहे, प्रलय हो।
ये चैन से हैं सो रहे, प्रलय हो।।
वो पेट भरते भूख से, प्रलय हो।
ये निश्चल हैं रूख से, प्रलय हो।।
जीवन बिकाऊ हो गया, प्रलय हो।
कैसा अनर्थ हो गया, प्रलय हो।।
प्रकृति करे अट्टहास, प्रलय हो।
स्वामी कहाँ, है कौन दास, प्रलय हो।।
लंबी लगी कतार है, प्रलय हो।
कैसा ये संस्कार है, प्रलय हो।।


माँ चाहती है

मां चाहती है, एक कोख धरती सरीखी
माँ चाहती है, पिता के प्यार से भरा आँचल
माँ चाहती है, बचपन खाली न होने दे गोदी को
माँ चाहती है, शब्दकोश क्रंदन का मौन का भी
माँ चाहती है, आंसुओं से नहीं नींद से बोझिल हो आंखें
माँ चाहती है, बस उतना पढ़ पाना कि पढ़ ले मासूम आँखों को
माँ चाहती है, बस उतना स्वर की लोरी गा सके
माँ चाहती है, चोट लगे तो जाते जाते सिखा जाए चलना
माँ चाहती है, बोले तो मिसरी घोले
माँ चाहती है, नन्ही आंखें sapneeli , ईर्ष्यालु नहीं
माँ चाहती है, बस उतना आराम कि फिर उठ खड़ी हो
माँ चाहती है, दे पाना उम्मीद उजले सवेरे कि
माँ चाहती है, कस के थामे रहना उंगली
माँ चाहती है, उंगली छोड़ पाना वक़्त आने पर
माँ चाहती है, प्रश्न चिन्ह लगने से पहले उत्तर बन जाए प्रश्न
माँ चाहती है, क्षमता फटकार पाने की अपनी जुड़े के टुकड़े को
माँ चाहती है, क्षमा अपनी सीमाओं से बंधी होने की
माँ चाहती है, ख़ुद को याद रख पाना
माँ चाहती है, आश्वासन कि प्यार ही परोसा जाएगा उसकी आंख के तारे को
माँ चाहती है, कुदरत की ममता सहलाया करे सदा
माँ चाहती है, परम रहे परमात्मा
माँ चाहती है, उपाधि बस मनुष्यता की