Wednesday, May 12, 2010

lamhon ka guchcha

लम्हों का एक गुच्छा है ज़िन्दगी.
जज़्बातों और हालातों की बंदिश है.
सिलसिला है साँसों का
चल रहा है जो बेमंज़िल.
क़ाफ़िला कुछ लोगों का,
जो हैं हमडगर,
हमसफ़र कोई नहीं.
और एक दिल है,
बवंडर जो अरमानों का है.
एक घटा तन्हाइयों की है,
जो गवाह है तड़प की.
तड़प की लपटों में,
चिता सा, दिल जलता है.
मगर रेशमी हवा ने,
फिर भी उठाया है बीड़ा.
तुम्हारी साँसों की ख़ुश्बू  से
मेरी रूह को महकाने का.
एहसासों कि जुम्बिश,
और लम्हों के इस गुच्छे से 
मैंने तोड़ लिया है एक लम्हा.
और रखा है सहेज के
वो एक लम्हा.
जिसने तुम्हें देकर
दे दी है मंज़िल
साँसों के सिलसिले को.

2 comments:

aditya chaudhary said...

BILKUL SAHI KAHA TUMNE...

Kuwait Gem said...

I got your profile and photographs from some another source for our commercial ad film project, and now i find u at facebook. by the way , your poems is very creative. keep it up. chandrapal, timesmedia@gmail.com , 9867777284

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