जज़्बातों और हालातों की बंदिश है.
सिलसिला है साँसों का
चल रहा है जो बेमंज़िल.
क़ाफ़िला कुछ लोगों का,
जो हैं हमडगर,
हमसफ़र कोई नहीं.
और एक दिल है,
बवंडर जो अरमानों का है.
एक घटा तन्हाइयों की है,
जो गवाह है तड़प की.
तड़प की लपटों में,
चिता सा, दिल जलता है.
मगर रेशमी हवा ने,
फिर भी उठाया है बीड़ा.
तुम्हारी साँसों की ख़ुश्बू से
मेरी रूह को महकाने का.
एहसासों कि जुम्बिश,
और लम्हों के इस गुच्छे से
मैंने तोड़ लिया है एक लम्हा.
और रखा है सहेज के
वो एक लम्हा.
जिसने तुम्हें देकर
दे दी है मंज़िल
साँसों के सिलसिले को.
2 comments:
BILKUL SAHI KAHA TUMNE...
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