Wednesday, May 12, 2010

shukriya

सोच,
किसी कुँए की गहराइयों में
गुम गयी है.
लफ़्ज़,
काग़ज़ पे न उतरने की
ज़िद्द पे अड़ गए हैं.
आज,
जब मैं ढूंढती हूँ,
शुक्रिया कहने का,
अंदाज़ कोई.
धागा,
रिश्ते वाला,
पड़ गया  है तंग.
इस बंदगी का नाम,
क्या है,
कुछ भी नहीं.
जुड़ गयी हो मुझसे
बनके तुम  "आवाज़" कोई.
नहीं जानती
"शुक्रिया"
कहने का अंदाज़ कोई.

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