Monday, September 14, 2015

चुप हूं

रो के, अखियांं भिगो के
अब चुप हूं।
जैसे चुप होता है समंदर
ज्वार भाटे के बाद।
जैसे सांझ हो आने पे
चुप हो जाते हैं परिंदे।
जैसे डपट दिए जाने पे
चुप होता है बचपन।
ठीक वैसे ही, अब
मैं चुप हूं।

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