अस्मिता स्त्री की हुई चिथड़े सरेबाज़ार है।।
द्रौपदी भी है यही, सीता यही, सति भी यही।
युगों की गाथा वही, लेती नया अवतार है।।
ताज पहने था, वो रावण हो या दुर्योधन कोई।
आज का राजा भी गूंगा है, बहुत लाचार है।।
रंक राजा रक्त जिसका, गर्भ से पीकर बने।
कायरों, खिलवाड़ माता से, नहीं प्रतिकार है।।
भ्रूण को जो चेतना की प्राण की सौग़ात दे।
एक बस वो तन नहीं, समूचा संसार है।।
हाथ जिनको नोचते, स्तन प्राण रस का स्रोत वो।
जन्म जो शूरों को दे, योनी वही हथियार है।।
चीर कर चादर बदन की, मैं की मद में चूर जो
आदमी ख़ुद को कहे, विकृत पशु बीमार है।।
एक तालीबान दोषी क्यों हो जब थोड़ी बहुत
'आज़ादी' औरत की हरिक मुल्क को दुश्वार है।।
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