Tuesday, December 7, 2021

सफ़रज़दा

 मन भारी है भरा सा है

आँख में पानी ज़रा सा है ।।

एक शख़्स फ़ना हो गया  

या मुझमें कुछ मरा सा है ।। 

जग ख़ूब है सफ़रज़दा 

ये झोंका क्यों ठहरा सा है।।

खोटा सब पीछे छूट गया 

जो रह गया खरा सा है।।

उखड़ा है जहाँ से दरख्त  

मेरा वो कोना खुरदरा सा है।।

था लाल, नीला पड़ गया 

ज़ख़्म मेरा अभी हरा सा है।।

नहीं मिलती है राह साँस को 

कोई सन सीने पे धरा सा है।।

जब ढह ही चुकी छत अपनी 

बादल बरसने से क्यों डरा सा है।।

है निगाह को धुँधला रहा 

कोई तिनका नहीं चेहरा सा है।।

कहाँ ताउम्र करने थे शिकवे 

कहाँ बस रूह का क़तरा सा है।।

मन बोझिल है भरा सा है।

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