Monday, September 14, 2015

चुप हूं

रो के, अखियांं भिगो के
अब चुप हूं।
जैसे चुप होता है समंदर
ज्वार भाटे के बाद।
जैसे सांझ हो आने पे
चुप हो जाते हैं परिंदे।
जैसे डपट दिए जाने पे
चुप होता है बचपन।
ठीक वैसे ही, अब
मैं चुप हूं।

Friday, September 11, 2015

Lamhon ka guchcha

लम्हों का एक गुच्छा है ज़िन्दगी.
जज़्बात और हालात की बंदिश है.
सिलसिला है साँसों का
चल रहा है जो बेमंज़िल.
क़ाफ़िला कुछ लोगों का,
जो हैं हमडगर,
हमसफ़र कोई नहीं.
और एक दिल है,
बवंडर जो अरमानों का है.
एक घटा तन्हाइयों की है,
जो गवाह है तड़प की.
तड़प की लपटों में,
चिता सा, दिल जलता है.
मगर रेशमी हवा ने,
फिर भी उठाया है बीड़ा.
तुम्हारी साँसों की ख़ुश्बू  से
मेरी रूह को महकाने का.
एहसासों कि जुम्बिश,
और लम्हों के इस गुच्छे से 
मैंने तोड़ लिया है एक लम्हा.
और रखा है सहेज के
वो एक लम्हा.
जिसने तुम्हें देकर
दे दी है मंज़िल
साँसों के सिलसिले को.

Saturday, September 5, 2015

I write!

I write,
So I may purge
I write
Coz I have an urge
I write
So that I may breathe
I write
Because I seethe
I write
Coz I am alive
I write
In my Self, I dive.
I write
My Life story
I write
Fresh not hoary
I write
Of those who speak curt
I write
So you know, I'm hurt
I write
To say oh hi!
I write
To say goodbye
I write
Coz life is rough
I write
When things are tough
I write. I write. I write.
With all my courage and might
When I lose all strength to fight.
I write to tell, I tell I was right.
I write. I write. I write.