ये महज़ हार न हो, अपने लिए
हम सबके लिए एक सबक़ हो
सबक कर्मनिष्ठा का
सबक़ एकजुट होने का
मौक़ा है अपने गरेबान में झाँकने का
ये सोचने का, कहाँ चूक रहे हैं हम
बजाय छींटाकशी के
समय अब भी है, बहुत कुछ बदलने का
अपना भविष्य रचने का,
इतिहास बदलने का
आवाम को बहलाने का नहीं
भागीदार बनाने का अब वक़्त है ।
yeh un lamhon ka guchcha hai jinhone meri rachnatmakta ko nayi dishaayein di hain...meri srijanaatmakta ke naye pehluon se mera parichay karwaya hai......yeh guchcha un lamhon ka bhi hai jinhone mera parichay mujhse karwaaya aur ab aapse karwaane ja rahe hain
Thursday, January 31, 2019
संगठन
Wednesday, January 30, 2019
जाने वो क्या था मुझमें
छू लिया जो तूने।
वो लम्हा जो तुझे दिया
मेरा था ही नहीं शायद।
तेरा बालपन, तेरी हठ
तेरे सवाल फ़िज़ूल के ,
मैं जानती थी
कि मौसमी हवाएं हैं
तेज़ रफ़्तार से मुझे
चूमने को बढ़ी आतीं,
हर बरस आती जाती हैं
मैं ढाँप कर ख़ुद को
किवाड़ मूँद लेती।
इस बार मन किया
लिपटने दूँ ख़ुद से इन्हें
तो खोल दी बाहें
बिना किसी आवरण के
कि चुरा ले तू ज़रा सी महक मेरी
और छोड़ जा मुझमें
नर्म एहसास अपनेपन का।
मग़रूर तू जब मुड़ा वापस
भूल गया किस रफ़्तार से बढ़ा था
मेरी ओर, और छू सका
बस इसलिए कि "मैंने चाहा"
चाहा तेरा, मुस्कुराना
जुदा होकर भी तू मुझमें बाक़ी है
पर मैं तेरा हासिल नहीं।
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