Friday, April 27, 2018

ये समय है

ये समय है बढ़ा क़दम, अथक चलना है।
अंधेरे की मशाल बन के ख़ुदी जलना है ।।
ये मौत का कुआँ है, ख़तरों की खाई है ।
या मरना है या कि तुझे ख़ुद संभलना है।।
जो ख़ुद निगल रहा हो अपने नन्हे फूल।
ऐसा है ये चमन, तुझे ज़िंदा निकलना है।।
जिसका दमन किया है उसीके सपूत ने।
तुझे उसी जननी की कोख में पलना है ।।
या बन ज़रा चालाक, ज़रा मौक़ापरस्त।
या बन लकीर का फ़कीर हाथ मलना है।।
जो लड़ रहा तपिश से वो अंकुर फूटेगा।
जो सो रहा आराम से उसे तो गलना है।।
ये समय है बढ़ा क़दम, अथक चलना है।।